Friday, June 13, 2014



पुराने जख्म है के भरते नहीं
हम उस गम से उभरते नहीं
बता ए जालिम जिंदगी
क्या खता है तेरी हम से
ये सितम के आलम है के गुजरते नहीं


  तेरे आगे भी नहीं तेरे बाद भी नहीं
  तेरे सामने भी नहीं तेरे साथ भी नहीं
  रुकी हुई है जिंदगी बिच सड़क में ऐसे
  ना आगाज है ये और अंजाम भी नहीं
  मेरा वजूद ढूंढ रही है मेरी जिंदगी यहाँ
  ना कल था कही और आज भी नहीं
  फ़साना सी बन गई है जिंदगी की कहानी
  न हकीकत है ये और ख्वाब भीं नहीं