Saturday, October 4, 2014



समन्दर को हमेशा ही ये पता होता है
के उसकी राह तक रहा एक किनारा होता है
उछलते मचलते लहरों को संभलने का एक सहारा होता है
किनारे की प्यास ना बुझी है कभी, ना बुझेगी
जितना भी समेट लो नजर में इस सागर को
उसका अक्स हमेशा ही आधा अधुरा होता है
किनारे से कटकर न समंदर रह सका है कभी
ना समंदर से कट के किनारे को अपना वजूद गवारा होता है
सदियों से बह रही इस कहानी का
न कोई पता है, न कोई ठिकाना होता है
जहाँ मिल जाए साहिल दरिया से
बस वही से शुरू इनका फ़साना होता है
यहाँ ना हकीकत ख्वाब से परे है
ना ख्वाब हकीकत से जुदा होता है
ये वो कहानी है
जहाँ ना कभी पाना होता है
और ना ही खोना होता है
- जीवनीका

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