Friday, November 11, 2011

गम

ग़मों ने जब भी
दस्तक दी थी दरवाजे पे
तो हमने पूछा था उनसे
'क्यों आये हो तुम '
उसने कहा था हर बार
'तुम ही तो थे जो
बोझ को ढोते रहे
आँखों में अश्क संजोते रहे
खुशियाँ तो आई थी दर पे तेरे
पर तुम ही मेरी राह तकते रहे
हम तो भूलना चाहते थे
तेरे घर का रास्ता
पर तुम ही खुशियों से बढकर
हमें अपना समझते रहे '

5 comments:

  1. bahut sundr bhav gam ka bhi svagat kiya hai , achhi lagi rachna

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  2. बढ़िया अभिव्यक्ति

    Gyan Darpan
    .

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  3. हम तो भूलना चाहते थे
    तेरे घर का रास्ता
    पर तुम ही खुशियों से बढकर
    हमें अपना समझते रहे '

    Sunder Abhivykti

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  4. आप सबका बहोत शुक्रिया!!

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