ग़मों ने जब भी
दस्तक दी थी दरवाजे पे
तो हमने पूछा था उनसे
'क्यों आये हो तुम '
उसने कहा था हर बार
'तुम ही तो थे जो
बोझ को ढोते रहे
आँखों में अश्क संजोते रहे
खुशियाँ तो आई थी दर पे तेरे
पर तुम ही मेरी राह तकते रहे
हम तो भूलना चाहते थे
तेरे घर का रास्ता
पर तुम ही खुशियों से बढकर
हमें अपना समझते रहे '
bahut sundr bhav gam ka bhi svagat kiya hai , achhi lagi rachna
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteGyan Darpan
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हम तो भूलना चाहते थे
ReplyDeleteतेरे घर का रास्ता
पर तुम ही खुशियों से बढकर
हमें अपना समझते रहे '
Sunder Abhivykti
sundar rachana
ReplyDeleteआप सबका बहोत शुक्रिया!!
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