Thursday, November 10, 2011

राह

घना अँधेरा है
साया भी नजर नहीं आता
थोडा वक्त दे
नजर को आदत हो जाएगी

काँटे बिछे है हर जगह
कहीं राह नहीं
थोड़े कदम बढ़ा
राह खुद ही बन जाएगी

काँटे चुभेंगे खून बहेगा
पर थोडा चल
तेरी आदत बन जाएगी

पर चलते चलते ना भूलना
राह से हर काटा चुन लेना
हो सके तो फुल भी खिला देना
अपने पसीने का थोडा पानी बहा देना
ताकि तेरे बाद आने वाले को
तु नजर आए ना आए
तेरी राह तो नजर आती रहेगी

2 comments:

  1. acchi lagi aapki yah kavitaa ..... likhti rahiye .... aapko padhnaa accha lagega

    badhayee

    utpal
    http://utpalkant.blogspot.com

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  2. thank you!! आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.

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