घना अँधेरा है
साया भी नजर नहीं आता
थोडा वक्त दे
नजर को आदत हो जाएगी
काँटे बिछे है हर जगह
कहीं राह नहीं
थोड़े कदम बढ़ा
राह खुद ही बन जाएगी
काँटे चुभेंगे खून बहेगा
पर थोडा चल
तेरी आदत बन जाएगी
पर चलते चलते ना भूलना
राह से हर काटा चुन लेना
हो सके तो फुल भी खिला देना
अपने पसीने का थोडा पानी बहा देना
ताकि तेरे बाद आने वाले को
तु नजर आए ना आए
तेरी राह तो नजर आती रहेगी
acchi lagi aapki yah kavitaa ..... likhti rahiye .... aapko padhnaa accha lagega
ReplyDeletebadhayee
utpal
http://utpalkant.blogspot.com
thank you!! आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.
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